‘दुर्गादास’ उपन्यास मुंशी प्रेमचन्द का एक ऐतिहासिक उपन्यास है। इसमें राष्ट्रप्रेमी, साहसी राजपूत दुर्गादास के संघर्षपूर्ण जीवन की कहानी है। वीर दुर्गादास अपने अनूठे आत्म-त्याग, अपनी निःस्वार्थ सेवा-भक्ति के लिए एक महान योद्धा के समान हैं। प्रस्तुत उपन्यास में दुर्गादास शूर होकर भी साधु पुरुष थे।
यह उपन्यास भारत की आजादी के पूर्व की पृष्ठभूमि में सेट मुंशी प्रेमचंद की सबसे प्रतिष्ठित उपन्यासों में से एक है। इस कहानी में नैतिक रूप से कमजोर युवक रमानाथ अपनी खूबसूरत पत्नी की लालसा को पूरा करने के क्रम में जटिल आर्थिक संकट में फसकर पलायनवादी हो जाता है...
इस उपन्यास के नायक बाबू अमृतराय का विवाह ‘प्रेमा’ नामक युवती से होना तय हुआ था, लेकिन कुदरत की इह लीला के कारण तब ऐसा नहीं हो सका।
इस कथानक में समाज सुधारक बाबू अमृतराय ने ‘एक विधवा को अपना जीवन संगिनी बनाकर ‘विधवा विवाह’ का विरोध करने वाले समाज के पोंगा पंडितों को गहरी सीख दी है...
महान उपन्यासकर मुंशी प्रेमचंद ने प्रस्तुत उपन्यास ‘गोदान’ में सामाजिक-आर्थिक चेतना को चित्रित किया है। इस उपन्यास में ब्रिटिश युग के दौरान गरीब ग्रामीणों की स्थिति पर प्रकाश डाला गया है। प्रस्तुत कथानक में होरी और धनिया सामाजिक वर्ग संघर्ष के अमर प्रतीक हैं।
कठिन परिस्थितियों में घुट–घुट कर जी रही भारतीय नारी की विवशताओं का सजीव चित्रण इस पुस्तक में है। ‘प्रतिज्ञा’ उपन्यास के नायक अमृतराय किसी विधवा से शादी करना चाहता है ताकि एक नवयौवना का जीवन बर्बाद होने से बच सके। नायिका पूर्णा आश्रयविहीन विधवा है। समाज के भूखे–भेड़िये उसके संचय को नष्ट करना चाहते हैं। प्रस्तुत उपन्यास में प्रेमचंद ने विधवा समस्या को नये रूप में प्रस्तुत करते हुए उसका समाधान भी सुझ